गाजीपुर। यूं तो गाजीपुर बहादुरों की धरती है लेकिन एक ऐसा भी शख्स था जो जंग-ए-मैदान में बहादुरी दिखाई तो अभिनय के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पता है वह कौन शख्स था। आइए हम बताते हैं। वह थे नजीर हुसैन। गंगा पार कमसार के उसिया गांव में 15 मई 1922 को जन्मे नसीर साहब आजादी से पहले 1940 में अंग्रेजों की फौज में शामिल हुए लेकिन अंग्रेज हूक्मरानों की अमानवीय करतूतें उन्हें रास नहीं आईं। वह बगावत पर उतर आए। उसके बाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। अपनी बहादुरी के बूते वह जल्द ही नेताजी के खास योद्धाओं में शुमार हो गए। दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के बाद अंग्रेज हूक्मरानों ने आजाद हिंद फौज के अन्य योद्धाओं के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। फिर आजादी की घोषणा के बाद उन्हें भी जेल से रिहा किया गया।
इत्तेफाकन फिल्मी दुनिया में उतरे
नजीर हुसैन आजादी के बाद समाज सेवा से जुड़ना चाहते थे लेकिन इत्तेफाक ऐसा बना कि वह फिल्मी दुनिया में उतर गए। दरअसल एक फिल्म निर्माता ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन पर फिल्म पहला आदमी बनाने की घोषणा की। उसी क्रम में वह उस निर्माता के संपर्क में आए। उन्हें उस फिल्म में फौजी डॉक्टर की भूमिका मिली। फिर तो पहली बार फिल्म प्रेमियों को पता चला कि हकीकत में जंग-ए-मैदान का योद्धा रहा यह शख्स अभिनय के मैदान का बड़ी प्रतिभा है। उसके बाद तो वह फिल्मी दुनिया में स्थापित हो गए। करीब चार दशक तक वह अभिनय के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखाते रहे। शायद कोई नामी फिल्म निर्माता-निर्देशक और अभिनेता बचा हो जिसके साथ नजीर हुसैन ने काम नहीं किया हो।
अपनी माटी और जुबान से था मोह
फिल्मी दुनिया में व्यस्त रहने के बावजूद नजीर हुसैन अपने गांव उसिया को कभी नहीं भूले। हर साल वह कोई ना कोई संदर्भ बना कर गांव आते। यहाँ तक कि अपने फिल्म प्रोडक्शन हाउस कमसार फिल्म के बैनर तले भोजपुरी फिल्म ‘‘हमार संसार’’ तथा ‘‘बलम परदेसिया’’ की ज्यादातर शूटिंग उसिया में ही किए। अपनी बेटी सेहरून निशा का निकाह भी उसिया के ही मिस्बाहुद्दीन से किए।
राष्ट्रपति ने देखी थी पहली फिल्म की स्क्रीनिंग
पहली भोजपुरी फिल्म ‘‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’’ थी। इसके सूत्रधार थे नजीर हुसैन। फिल्म की पहली स्क्रीनिंग खुद तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने देखी थी। विधवा पुनर्विवाह पर आधारित यह फिल्म सन् 1963 में प्रदर्शित हुई थी। उसमें मुख्य किरदार निभाने के साथ उसकी पटकथा भी नजीर हुसैन ने लिखी थी। गीत शैलेंद्र के थे। निर्देशन कुंदन कुमार का था। उसमें कुमकुम, असीम कुमार भी मुख्य किरदार थे। चित्रगुप्त ने संगीत दिया था और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी ने अपना स्वर। गीतकार शैलेंद्र ने उसे अपने गीतों से सजाया था। फिल्म का मुहूर्त शॉट पटना के शहीद स्मारक में हुआ था। उसके ज्यादातर हिस्से बिहटा में फिल्माए गए थे। पटना के गोलघर और आरा के रेलवे स्टेशन में भी दृश्य फिल्माए गए। एक साल में फिल्म का निर्माण पूरा हुआ था। सबसे पहले वाराणसी के प्रकाश टाकीज में वह प्रदर्शित हुई। फिर तो फिल्म सफलता का झंडा गाड़ दी। फिल्म निर्माण में कुल पांच लाख रुपये की लागत आई थी और कुल व्यवसाय नौ लाख रुपये का हुआ था। उसके बाद तो नजीर हुसैन का हौसला बढ़ा। वह खुद का प्रोडक्शन हाउस कमसार फिल्म बनाए और कई सफल भोजपुरी फिल्में दिए। फिर 24 जनवरी 1984 को वह घड़ी आ गई जब जांबाज योद्धा और बेहतरीन कलाकार नजीर हुसैन साहब दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह गए।